विशेष: सरकारी कर्मचारी!!!
विशेष में प्रस्तुत है,
एक सरकारी कर्मचारी की कलम से__
कहने वाले कहते रहे,
निकम्मे हैं सरकारी ।
आज इस विकट महामारी दौर में,
काम आए सरकारी ।
कोई न आते पास मरीज के,
दवा पिलाते सरकारी ।।
कोई न इनके हाथ लगाते ,
मल मूत्र उठाते सरकारी ।
कोई न इनको रोक पाते,
पत्थर खाते सरकारी।।
चौराहों पर चौबीसों घण्टे ,
पाठ पढ़ाते सरकारी ।
स्कूलों में बारातियों सी ,
खातिर करते सरकारी ।
छोड़ परिवार डटे हुए हैं,
कर्तव्य पथ पर सरकारी।
नेताओ ने नाम कमाया,
देकर धन सरकारी।
घर रहने की विनती करते,
गाना गाकर ये सरकारी।
घर घर जो सर्वे करते,
वो वन्दे सारे सरकार।।
*डाक/पार्सल घर घर पहुंचाते*
*डाक कर्मचारी सरकारी*
अपनी कमाई का हिस्सा दे,
बिना नाम के सरकारी।
धन कम पडे खजाने में तो,
DA कुर्बान करे सरकारी।
मौत सर पर लिए बैठे हैं
ये निकम्मे सारे सरकार।।
प्रवासी मजदुरो को घर पहुंचाए
रेलवे इम्पलाई सरकारी।
कहने वाले कहते रहे,
निकम्मे हैं सरकारी
अपने फर्ज की खातिर
जान कुर्बान कर देते हैं सरकारी।।
(एक सरकारी कर्मचारी की कलम से)
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