व्यंग्य: तू जहां-जहां चलेगा, वसूली का साया साथ होगा: नवेन्दु उन्मेष
एक फिल्म का गीत है- 'तू जहां-जहां चलेगा मेरा साया साथ होगा।'
इसका मतलब साफ है कि, जिस दिन बच्चा धरती पर आता है उस दिन से वह वसूली का साया साथ लेकर आता है। अपने जीवन में या तो वह वसूली करता है या अपने माता-पिता से वसूली करवाता है। अस्पताल में बच्चे के पैदा होते ही वसूली करने वाले तैनात रहते हैं।
कहेंगे आपके घर में नया मेहमान आया है। मुझे मिठाई खिलाइये। अगर नहीं खिलाया तो बद्दुआ देने को तैयार रहते हैं।
तब बद्दुआ की डर से माता-पिता उसे मिठाई खिला देते हैं या फिर कुछ पैसे देकर निपटा देते है। अस्पताल से बच्चा जब घर आता है तो हिजड़े पीछे पड़ जाते हैं। ढोल-मंजीरा लेकर वसूली के लिए तैयार बैठे रहते हैं। डर से माता-पिता हिजड़ों को जैसे-तैसे कुछ पैसे और सामान देकर निपटा देते हैं।
इसके बाद जब बच्चा खुदा न खास्ते बीमार पड़ गया तो बीमारी भी पैसे वसूलती है। डाॅक्टर, दवा और अस्पताल वसूली के लिए बैठे रहते हैं। बच्चा अस्पताल में बीमारी से ठीक हो जाता है तो कुछ लोग आ जाते हैं कहते हैं। मेरी सेवा से आपका बच्चा ठीक हो गया। कुछ दीजिए।
बच्चा जब स्कूल जाता है तो स्कूल वाले वसूली का हथियार लिए बैठे होते हैं। उनके हथियार की दांत भी कई प्रकार के होते हैं। बिल्डिंग शुल्क, टयूशन-शुल्क, शिक्षण शुल्क, किताब शुल्क, वाहन, ड्रेस शुल्क और न जाने क्या-क्या। बच्चा जैसे-जैसे बढ़ता जाता है उसके नाम पर दुनिया में वसूली शुल्क बढ़ती जाती है। बच्चा जब बड़ा होकर किसी प्रकार नौकरी पकड़ता है या तो वह खुद वसूली करता है या फिर वसूली करवाता है।
अगर वह किसी ऐसे विभाग में नौकरी करता है जिसमें सिर्फ वसूली की बाते होती हैं तो वह इसके लिए वसूली चिंतन करता है। उसे सिर्फ इस बात की चिंता होती है कि लोगों से वसूली कैसे करना है। वसूली के लिए अगर उसे लाठी-डंडे चलना पड़े तो वह उसे भी आजमाता है। तब लोग कहते हैं देखो हमसे वसूली कर रहा है। इसके लिए वह गालियां भी खाता है।
मतलब साफ है धरती पर आदमी दो ही काम करने के लिए आया है। या तो वसूली करता है या वसूली करवाता है। सरकारी सेवा में है तो उसकी वसूली के काम की प्रशंसा मिलती है। कहा जाता है कि अमुक विभाग के अफसर ने इतने रुपये की वसूली की है। अगर किसी ने ज्यादा आमदनी करके आयकर विभाग को पैसे दिये तो कहा जाता है कि उसने इतना रुपये विभाग को दिये। कुछ सरकारी विभाग ऐसे होते हैं जहां निजी वसूली भी होती है। उसे निजी वसूली शुल्क कहते हैं।
विरोधी ऐसी वसूली को रिश्वत कहते हैं। कुूछ सरकारी विभाग ऐसे भी होते हैं, जहां निजी वसूली शुल्क की बरसात होती है। ऐसे विभाग में जाने की चाहत, प्रत्येक व्यक्ति की होती है।
मेरे मुहल्ले में एक सज्जन हैं जो ऐसे विभाग में काम करते हैं जहां निजी वसूली आसानी से होती है। मैेने उनसे पूछा कि आप वसूली कैसे करते हैं।
उन्होंने झट से मुझे कहा मैं वसूली थोड़े करता हॅूं। मेरे पास जो भी काम कराने के लिए आता है मैं उससे कहता हॅूं तुम्हें जो भी देना हो ब्राह्मण के चरणों में रख दो। इसके बाद उसका काम हो जाता है और वह मेरा आशीर्वाद लेकर खुशी-खुशी चला जाता है।
तो मैं कह रहा था कि प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में वसूली का साया साथ-साथ चलाता रहता हैं। वसूली का साया मौत आने तक जारी रहता है। मरने के बाद भी वसूली करने वाले उसके आगे खड़े रहते हैं। विद्युत शवदाह गृह में जब उसके शरीर का अंतिम संस्कार किया जाता है तब भी उससे वसूली की लाती है। मौत की रिपोर्ट लेने जाइये तो उसके नाम पर अंतिम बार वसूली होती है। वह जब तक जिंदा रहा या तो उससे वसूली करने वाले खड़े रहे या तो वह खुद वसूली करवाता
रहा।
(नवेन्दु उन्मेष, पत्रकार)
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