
सावन महीने में भगवान शिव पर विशेष आलेख: शिव प्रकाश-पुंज स्वरूप हैं !
उत्तरकाशी (उत्तराखंड): सुनील कुमार महला, फ्रीलांस राइटर, कालमिस्ट व युवा साहित्यकार ने आज की विशेष प्रस्तुति में "सावन महीने में भगवान शिव पर विशेष आलेख" प्रस्तुत किया है, जिसका शीर्षक है- "शिव प्रकाश-पुंज स्वरूप हैं !"
"शिव प्रकाश-पुंज स्वरूप हैं":
सनातन भारतीय संस्कृति में सावन का महीना व्रत और पूजा का महीना है। हिंदू पंचांग के अनुसार, सावन माह का आरंभ 11 जुलाई 2025 को हो चुका है और समापन पूर्णिमा तिथि यानी 9 अगस्त 2025 को होगा। ऐसे में इस बार सावन में 30 नहीं, बल्कि 29 दिन के होंगे।
शिवपुराण और अन्य भारतीय धार्मिक ग्रंथों में सावन और भगवान शिव की महिमा का विस्तार से वर्णन मिलता है।
कहा जाता है कि, शिवजी बहुत जल्दी प्रसन्न होने वाले देवता हैं, वे भोले हैं। इतने भोले हैं कि, उन्हें सच्चे मन से अगर कोई एक बेलपत्र और जल भी अर्पित करे, तो वे प्रसन्न हो जाते हैं।
सावन के इस महीने में भगवान शिव शंकर की विशेष पूजा-अर्चना होती है। शिव एक अद्भुत शक्ति के प्रतीक हैं, वे तपस्वी हैं, विध्वंस के देवता हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो शिव को विनाश और परिवर्तन का देवता माना जाता है, लेकिन उनका विनाश भी रचनात्मक होता है, क्योंकि वे अज्ञान और माया को नष्ट करके ज्ञान और प्रकाश लाते हैं।
वे योग और ध्यान के देवता हैं। इसीलिए उनको 'आदियोगी' कहा गया है। शिव का अर्थ 'मंगलकारी' है, और वे शुभ, दयालु, और परोपकारी हैं।
कहना ग़लत नहीं होगा कि, शिव वह चेतना हैं, जहाँ से सब कुछ आरम्भ होता है, जहाँ सबका पोषण होता है और जिसमें सब कुछ विलीन हो जाता है। मनुष्य मन, शरीर और सब कुछ केवल शिव तत्व से ही बना हुआ है, इसीलिए शिव को ‘विश्वरूप’ कहते हैं, जिसका अर्थ है कि सारी सृष्टि उन्हीं का रूप है। शिव का कोई आदि और अंत नही है। बड़े ही सुंदर शब्दों में कहा गया है कि- 'नमामि शमीशाननिर्वाण रूपम विभुं व्यापकं ब्रह्म वेद स्वरूपं।निजम निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाशमाकाशवासं भजेहं।।'
इसका तात्पर्य यह है कि, शिव परमात्मा हैं, शिव सर्वशक्तिमान हैं, शिव सर्वत्र विद्यमान हैं। ऐसा कोई स्थान नहीं है जहाँ शिव न हों। यह वह आकाश हैं; वह चेतना हैं, जहाँ सारा ज्ञान विद्यमान है। वे अजन्मे हैं और निर्गुण हैं। वे समाधि की वह अवस्था हैं जहाँ कुछ भी नहीं है, केवल भीतरी चेतना का खाली आकाश है। वही शिव हैं।
हिंदू धर्म में उन्हें शंकर, शंभु,महेश, रूद्र, भोलेनाथ, कैलाशपति, त्रिकालदर्शी आदि अन्य नामों से भी जाना जाता है। हिंदू धर्म में यह मान्यता है कि, भगवान शिव 'देवों में देव महादेव' हैं जो पूर्ण परमात्मा हैं। कुछ लोग शिव को भगवान महाशिव,महाकाल,सदाशिव, साम्ब सदाशिव,बाबा विश्वनाथ तथा पशुपतिनाथ के रूप में भी पूजते हैं।
शिव कहते हैं, मृत्यु भी मैं हूं, महाविनाश का सूत्र भी मैं ही हूं।
सावन के महीने में शिवलिंग पर जल अर्पित करना सबसे सरल और पवित्र कृत्य माना जाता है। यह क्रिया हमारे भीतर के क्रोध, तनाव और अस्थिरता को शांत करती है। शिवलिंग पर जलाभिषेक करने से हमारा मन शांत और स्वभाव विनम्र होता है। शिवलिंग पर दूध अर्पित करने से स्वास्थ्य का वरदान मिलता है। दही शिवलिंग पर चढ़ाने से हमारे स्वभाव में गंभीरता और स्थिरता आती है। यह मन को चंचलता से बचाता है और सोचने-समझने की शक्ति को बढ़ाता है। शिवलिंग पर शक्कर चढ़ाने से घर में सुख-शांति और आर्थिक उन्नति आती है। यह जीवन में मीठे रिश्तों और खुशियों का संचार करता है। शहद को अर्पित करने से वाणी में मधुरता और सौम्यता आती है। घी, जो ऊर्जा और तेज का प्रतीक है, शिव को चढ़ाने से हमारे भीतर शक्ति, आत्मविश्वास और सहनशक्ति की वृद्धि होती है। शिवलिंग पर इत्र अर्पित करने से पवित्रता सकारात्मकता, चंदन अर्पित करने से सम्मान, प्रतिष्ठा और सामाजिक स्तर में वृद्धि होती है।महादेव को भांग अति प्रिय है। इसे अर्पित करने का तात्पर्य है अपने अंदर मौजूद विकारों, बुराइयों और बंधनों का विसर्जन। यह आत्मिक शुद्धि और संयम का प्रतीक है। केसर शिव को चढ़ाने से हमारे स्वभाव में सौम्यता, कोमलता और धैर्य आता है। यह आत्मिक संतुलन को बनाए रखने में मदद करता है और मानसिक उन्नयन का मार्ग प्रशस्त करता है।
शिव का पंचाक्षर मंत्र 'ॐ नमः शिवाय’ है। ज्योतिषाचार्यों का यह मानना है कि, सावन के महीने में महामृत्युंजय मंत्र- ‘ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्, उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्’ का जाप करना चाहिए। बहरहाल, यहां पाठकों को बताता चलूं कि भगवान शिव और शंकर में अंतर है। शिव पुराण के अनुसार, महादेव जब अस्तित्व में आए थे, तो वो साकार रूप में नहीं आए थे, बल्कि सबसे पहले प्रकाश पुंज की उत्पत्ति हुई थी। जानकारी मिलती है कि, इसी प्रकाश पुंज द्वारा ब्रह्मा जी और विष्णु जी की भी उत्पत्ति हुई थी। कहते हैं कि उस प्रकाश पुंज का कोई और अथवा छोर नहीं था। कथा के अनुसार, ब्रह्मा जी ने अंततः उस प्रकाश पुंज से पूछा कि 'आप कौन हैं', तो उस पुंज ने जवाब दिया कि 'मैं शिव हूं।' जवाब सुनकर ब्रह्मा जी ने प्रकाश पुंज से साकार रूप में दिखने की इच्छा जताई। कहते हैं कि इसके बाद ही 'प्रकाश पुंज' ने साकार रूप में दर्शन दिए और भगवान शिव के इस साकार रूप को ही भगवान शंकर कहा जाता है। भगवान शिव और शंकर एक ही शक्ति के अंश हैं, परंतु एक निराकार रूप है और दूसरा साकार रूप।
वास्तव में,शिव केवल एक हिंदू देवता नहीं हैं, बल्कि एक अवस्था, एक अनुभव, एक आंतरिक ऊर्जा है। दूसरे शब्दों में कहें तो शिव वह अवस्था है, जहां व्यक्ति अपने भीतर की अनंत ऊर्जा को पाता है और आनंदित होता है। दूसरे शब्दों में यह कहना ग़लत नहीं होगा कि, शिव को एक देवता के रूप में न देखकर, एक ऐसी अवस्था के रूप में देखा जाता है जो हर इंसान के भीतर मौजूद है। शिव 'अर्धनारीश्वर' के रूप में आधा पुरुष और आधा महिला है। यह प्रतीक इस विचार को दर्शाता है कि पुरुष और महिला दोनों में ही शिव का वास है। वास्तव में, शब्द ‘शिव’ का सही अर्थ है, ‘वह जो नहीं है।’ शिव, ब्रह्म लोक में परमधाम के निवासी हैं और शंकर सूक्ष्म लोक में रहने वाले हैं। साकार रूप में वे अनंत ज्ञान के प्रतीक और अद्वितीय हैं,योगी हैं। वहीं शिव, प्रकाश पुंज स्वरूप हैं, जिनकी हम शिवलिंग के रूप में पूजा करते हैं।
भगवान शंकर भी निराकार शिव की पूजा शिवलिंग के रूप में करते हैं क्योंकि शिव सबके स्रोत हैं। शंकर की प्रकृति है, शरीर है, स्वभाव है, परिवार है, विकार है जबकि शिव निर्विकार, निर्लिप्त, अनादि-अनंत ज्योति है।
इस प्रकार शिव और शंकर एक होकर भी अलग-अलग हैं। निराकार रूप में भगवान् शिव की महिमा, ऊर्जा और शक्ति भगवान् शंकर से कहीं अधिक प्रभावशाली है और इस कारण सम्पूर्ण जगत के साथ-साथ त्रिदेव् और समस्त देव भी उनकी आराधना करते हैं।
जीवन के तीन पहलू हैं- उत्पत्ति, स्थिति और विनाश। मतलब यह है कि जो बना है,वह एक न एक दिन मिटेगा भी,उसका विनाश भी होना तय है। बनना और मिटना, सृजन और संहार, एक ही प्रक्रिया के अंग हैं। शिव को अराजकता और सृजन दोनों का प्रतीक माना जाता है। वे विनाश के देवता हैं, लेकिन विनाश के बाद ही सृजन होता है, और वे इस प्रक्रिया को नियंत्रित करते हैं।
हर मनुष्य को यह बात अपने जेहन में रखनी चाहिए कि, समस्त सृजन विनाश को पैदा करता है, और समस्त विनाश नए सृजन को जन्म देता है।
इसलिए कृष्ण अर्जुन से यह कहते हैं कि-' विनाश से तुम परेशान और पीड़ित मत हो। मृत्यु भी तुमको भयभीत न करे। तुम मृत्यु में भी मुझे देख सकते हो, क्योंकि विनाश की अंतिम शक्ति भी मैं ही हूं।'
संक्षेप में, कृष्ण अर्जुन को कर्मयोग, निष्काम कर्म और आत्मा की अमरता का उपदेश देते हैं, जिससे अर्जुन युद्ध के दौरान होने वाले विनाश से पीड़ित न हों।
वास्तव में, मृत्यु जीवन का ही एक अंग है, हिस्सा है।
सच तो यह है कि, मृत्यु को समझे बिना जीवन को समझा ही नहीं जा सकता। वे जीवन के दो छोर हैं: एक तरफ से आना, दूसरी तरफ से जाना।
संक्षेप में, यही कहूंगा कि शिव जीवन और मृत्यु दोनों के प्रतीक हैं, लेकिन वे मृत्यु से परे, शाश्वत और अमर हैं।
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