'इथेनॉल' का उत्पादन करने हेतु धान के भूसे के उपयोग के लिए एचपीसीएल द्वारा पंजाब के बठिंडा में दूसरी पीढ़ी के जैव-रिफाइनरी संयंत्र की स्थापना में हुई प्रगति की समीक्षा
'इथेनॉल' का उत्पादन करने हेतु धान के भूसे के उपयोग के लिए यह संयंत्र पंजाब में धान की पराली जलाने की घटनाओं में कमी लाएगा
नई दिल्ली (PIB): हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (एचपीसीएल), जोकि एक केन्द्र सरकार का सार्वजनिक उपक्रम है, 1,400 करोड़ से अधिक की लागत से पंजाब के बठिंडा में दूसरी पीढ़ी (2जी) के जैव-रिफाइनरी संयंत्र की स्थापना कर रही है। इस 2जी बायो-रिफाइनरी को केन्द्र सरकार के इथेनॉल मिश्रण कार्यक्रम के तहत पेट्रोल के साथ मिश्रित करने के लिए इथेनॉल के उत्पादन के हेतु धान के भूसे के उपयोग के लिए डिजाइन किया गया है। इस संयंत्र के स्थापना कार्य में होने वाली प्रगति की निगरानी एनसीआर और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) द्वारा भी की जा रही है। आयोग ने बठिंडा स्थित संयंत्र परिसर का दौरा भी किया था और एचपीसीएल के सीएमडी एवं बठिंडा के जिला प्रशासन के साथ स्थापना कार्य में हुई प्रगति की समीक्षा भी की थी।
इस 2जी इथेनॉल संयंत्र की डिजाइन की गई उत्पादन क्षमता 100 किलो लीटर (केएल) इथेनॉल प्रतिदिन है और इसके अपनी पूरी क्षमता के साथ काम करने की स्थिति में इस उद्देश्य के लिए प्रतिदिन 570 एमटी (2,00,000 एमटी सालाना) धान के भूसे का उपयोग किया जाएगा। आगामी 2जी इथेनॉल संयंत्र, जिसके इस साल के अंत तक चालू होने की उम्मीद है, के लिए फीडस्टॉक के रूप में उपयोग के लिए इस सीजन में लगभग एक लाख एमटी बायोमास खरीदा जाएगा।
इस संयंत्र ने पहले ही बायोमास की खरीद शुरू कर दी है और अगले कुछ दिनों में खरीद में तेजी आने की उम्मीद है। एचपीसीएल खरीद से संबंधित समस्याओं को सुव्यवस्थित व हल करने के लिए पंजाब राज्य सरकार, जिला प्रशासन और पंजाब ऊर्जा विकास एजेंसी (पीईडीए) के साथ समन्वय कर रहा है। धान की पराली खरीद के लिए बठिंडा और आसपास के क्षेत्रों के स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) के साथ समझौते किए गए हैं। कुल 23,000 एमटी से अधिक धान का भूसा पहले ही एकत्रित किया जा चुका है।
यह संयंत्र पंजाब में, विशेषकर बठिंडा जिले में, इस वर्ष और साथ ही आने वाले वर्षों में धान की पराली जलाने की घटनाओं में काफी कमी लाएगा। इसका असर पहले से ही दिख रहा है। इस वर्ष 15 सितंबर से लेकर 01 नवंबर तक की अवधि में, बठिंडा में धान की पराली जलाने के कुल मामले 2022 में 880 से घटकर 294 हो गए हैं।
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(साभार - मल्टी मीडिया)
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