Climate कहानी: धरती का बढ़ रहा बुखार, इलाज अब भी अधूरा
लखनऊ: आज की "विशेष प्रस्तुति" में, जब अंग्रेजी वर्ष 2025 समाप्त होने की पूर्व संध्या पर पहुँच रही है, मानव जीवन को बचने के उद्देश्य से "धरती का बढ़ रहा बुखार, इलाज अब भी अधूरा" शीर्षक से Climate कहानी के माध्यम से एक सच्चाई प्रस्तुत की जा रही है!
Climate कहानी: धरती का बढ़ रहा बुखार, इलाज अब भी अधूरा:
2025 दुनिया के लिए एक और चेतावनी भरा साल बनकर उभरा है। गर्मी, सूखा, बाढ़, तूफान और जंगलों की आग ने यह साफ कर दिया है कि जलवायु संकट अब भविष्य की बात नहीं रहा। यह हमारे दरवाज़े पर खड़ा है। और सबसे ज्यादा चोट उन लोगों पर पड़ी है, जो पहले से ही सबसे कमजोर हैं।
वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन की नई रिपोर्ट बताती है कि 2025 में दुनिया भर में चरम मौसम की घटनाएं अभूतपूर्व रहीं। रिपोर्ट के मुताबिक यह साल अब तक के सबसे गर्म वर्षों में शामिल हो गया है, जबकि इस दौरान ला नीना जैसी परिस्थितियां मौजूद थीं, जो आम तौर पर तापमान को थोड़ा ठंडा करती हैं। इसके बावजूद धरती का औसत तापमान खतरनाक स्तर पर पहुंच गया।
रिपोर्ट साफ कहती है कि जलवायु परिवर्तन अब किसी अनुमान का विषय नहीं रहा। इसके असर हर महाद्वीप में, हर समाज में और हर अर्थव्यवस्था में दिख रहे हैं।
गरीब सबसे ज्यादा प्रभावित
इस साल दुनिया भर में 157 बड़े चरम मौसम घटनाओं को दर्ज किया गया। इनमें बाढ़ और हीटवेव सबसे ज्यादा रहीं। अकेले यूरोप में एक ही गर्मी की लहर के दौरान करीब 24 हजार लोगों की मौत का अनुमान है। अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका में हालात और भी गंभीर रहे, जहां कमजोर स्वास्थ्य व्यवस्था और सीमित संसाधनों ने संकट को और गहरा कर दिया।
रिपोर्ट बताती है कि जलवायु संकट का बोझ असमान रूप से पड़ रहा है। गरीब समुदाय, बुज़ुर्ग, बच्चे और हाशिए पर रहने वाले लोग सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं। वहीं दूसरी ओर, कई देशों में डेटा की कमी के कारण इन प्रभावों की पूरी तस्वीर सामने भी नहीं आ पाती।
1.5 डिग्री की सीमा पार होने के करीब
वैज्ञानिकों के मुताबिक 2025 में तीन साल का औसत तापमान पहली बार 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार कर गया है। यह वही सीमा है, जिसे पेरिस समझौते में सुरक्षित भविष्य के लिए अहम माना गया था।
वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन की सह संस्थापक और इंपीरियल कॉलेज लंदन की प्रोफेसर फ्रेडरिके ओटो कहती हैं कि अब जलवायु जोखिम काल्पनिक नहीं रहे। जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता लगातार जानें ले रही है, अरबों डॉलर का नुकसान कर रही है और समाजों को भीतर से तोड़ रही है।
आग, बाढ़ और तूफान, हर तरफ संकट
2025 में जंगलों की आग, खासकर अमेरिका और यूरोप के कुछ हिस्सों में, पहले से कहीं ज्यादा भयानक रहीं। वैज्ञानिकों के मुताबिक आग लगने की घटनाएं भले ही इंसानी गतिविधियों से शुरू होती हों, लेकिन उनका इतना व्यापक और विनाशकारी रूप लेना सीधे तौर पर जलवायु परिवर्तन से जुड़ा है।
इसी तरह तूफानों और भारी बारिश ने एशिया और कैरिबियन क्षेत्रों में भारी तबाही मचाई। कई मामलों में जलवायु परिवर्तन ने इन घटनाओं की तीव्रता को कई गुना बढ़ा दिया।
चेतावनी साफ है
रिपोर्ट कहती है कि अगर उत्सर्जन में तेज़ कटौती नहीं हुई, तो आने वाले साल और भी खतरनाक होंगे। विशेषज्ञों के मुताबिक अब अनुकूलन की भी एक सीमा सामने आ रही है। कुछ जगहों पर लोग अब हालात के साथ खुद को ढाल भी नहीं पा रहे।
रॉयल नीदरलैंड्स मौसम संस्थान की वैज्ञानिक स्यूके फिलिप कहती हैं कि यह अब सामान्य उतार चढ़ाव नहीं है। धरती एक नई और खतरनाक अवस्था में प्रवेश कर चुकी है, जहां थोड़ी सी गर्मी भी बड़े पैमाने पर तबाही ला सकती है।
रास्ता अभी भी खुला है, लेकिन वक्त कम है
रिपोर्ट साफ कहती है कि जीवाश्म ईंधनों से दूर जाना अब विकल्प नहीं बल्कि ज़रूरत है। अगर सरकारें अभी भी ठोस कदम उठाएं, तो आने वाली पीढ़ियों को सबसे भयावह हालात से बचाया जा सकता है।
वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन के वैज्ञानिकों का कहना है कि 2026 और उसके बाद के साल यह तय करेंगे कि दुनिया इस संकट से सीखेगी या उसकी कीमत और ज़्यादा चुकाएगी।
यह रिपोर्ट सिर्फ आंकड़ों की कहानी नहीं है। यह एक चेतावनी है, एक पुकार है, कि अगर आज नहीं चेते तो कल बहुत देर हो जाएगी।
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