कोयंबटूर, तमिलनाडु में दक्षिण भारत प्राकृतिक कृषि शिखर सम्मेलन 2025 में प्रधानमंत्री के संबोधन का मूल पाठ और YouTube पर सजीव प्रसारण: प्रधान मंत्री कार्यालय
Prime Minister Narendra Modi attends South India Natural Farming Summit-2025, Coimbatore, TN
नई दिल्ली (PIB): प्रधान मंत्री कार्यालय ने "कोयंबटूर, तमिलनाडु में दक्षिण भारत प्राकृतिक कृषि शिखर सम्मेलन 2025 में प्रधानमंत्री के संबोधन का मूल पाठ और YouTube पर सजीव प्रसारण" जारी किया।
कोयंबटूर, तमिलनाडु में दक्षिण भारत प्राकृतिक कृषि शिखर सम्मेलन 2025 में प्रधानमंत्री के संबोधन का मूल पाठ:
वणक्कम!
मंच पर होटल तमिल के गवर्नर आर एन रवि जी, केंद्रीय संग्रहालय में मेरे मित्र एल मुरुगन जी, तमिल एग्रीकल्चर विश्वविद्यालय के पूर्व पादरी डॉक्टर के। रामासामी जी, विभिन्न अलग-अलग कृषि विद्वानों से आए रिज़ॉर्ट महानुभाव, अन्य सहयोगी साम्यवादीगण, मेरे प्रिय किसान भाईयों और भाइयों और देश भर में डिजिटल टेक्नोलॉजी के माध्यम से लाखों किसान हमारे साथ जुड़े हुए हैं, मैंने यहां से भी एक वीडियो बनाया है, नमस्कार कहा, और सबसे पहले मैं आपकी भी और पत्रिका में जमा हुआ हूं मेरे किसान भाइयों की भी क्षमा मांगता हूं। मेरे आने में करीब-करीब एक घंटे की देरी हो गई, क्योंकि आज पुट्टपर्थी में सत्य साईं बाबा के कार्यक्रम में था, लेकिन वहां का कार्यक्रम थोड़ा चल गया था, तो मेरे आने में देर हो गई, आप लोग जो शामिल हो गए, क्लासिक में मैं देख रहा हूं, काफी लोग बैठे हैं, इसके लिए मैं आप लोगों की क्षमा मांगता हूं।
मैं जब पांडियन जी का भाषण सुन रहा था, तो मुझे अच्छा लगा, किसी ने मुझे बचपन में तमिल सिखाई थी, तो मैं आज उस भाषण का इतना आनंद ले सकता था, लेकिन मुझे जो कुछ समझ में नहीं आया, वो जल्लीकटु की बात कर रहे थे, कोविड के समय जो कहा गया था उसकी चर्चा कर रहे थे, लेकिन मैंने रवीश जी को कहा है कि मुझे पांडियन जी के भाषण को हिंदी और अंग्रेजी में पढ़ा, मैंने इसे पढ़ा, मैं उनकी भावना को पूरी तरह से आश्वस्त कर रहा था, मैं अनुभव कर रहा था और मुझे ये बहुत अच्छा लगा। जब मैं यहां मंच पर आया, तो मैंने देखा कि काफी किसान भाई बहन, वो अपना गमछा घुमा रहे थे, तो मुझे लग रहा था कि बिहार की हवा मेरे पास आने से पहले पहुंच गई है।
मेरे किसान भाई लड़ियाँ,
कोयम्बटूर की इस पवित्र धरती पर, सबसे पहले मैं मरुद-मलाई के भगवान मुरुगन को प्रणाम करता हूँ। कोयम्बटूर, कल्चर, कम्पैशन और लक्जरी की भूमि है। इस शहर में दक्षिण भारत का उद्यम शक्ति का विद्युत केंद्र है। यहां का टेक्सटाइल सेक्टर, देश की अर्थव्यवस्था का बहुत बड़ा योगदानकर्ता है, और अब तो कोयंबटूर का एक और महत्व विशेष बन गया है, यहां के भूतपूर्व नाबालिग सी.पी.राधाकृष्णन जी, अब विशेष रूप से हम सभी का मार्गदर्शन कर रहे हैं।
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नाइचुरल फॉर्मिंग, एक ऐसा विषय है, जो मेरे दिल के बहुत करीब है। मैं तमिल के सभी किसान साथियों को, साउथ इंडिया नेचुरल फार्मिंग समिट के इस अप्रत्याशित आयोजन के लिए शुभकामनाएं देता हूं। और अभी मैंने देखा था, मुझे बहुत सारे किसानों से बातचीत करने का सौभाग्य मिला और कोई भी सामान लेकर आया, तो मैंने मेरी रसोई में बहुत सी चीजें गाईं और आज मैंने बहुत कुछ सीखा है। मैं अब मन से तमिल के किसानों की जो बातें करता हूं, परिवर्तन को स्वीकार करने की उनकी जो ताकत है, सौ-सौ सलाम करता हूं। यहां किसान भाई-बहन, एग्रीकल्चर साइंटिस्ट, इंडस्ट्री से जुड़े दोस्त, टीएम एप्स और इनोवेटर्स सब एक साथ स्टाइलिश हैं। मैं आप सभी का बहुत-बहुत अभिनंदन करता हूं।
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आने वाले वर्षों में मैं भारत की खेती में कई बड़े बदलाव देख रहा हूं। भारत, नैचुरल फॉर्मिंग का ग्लोबल हब बनने की राह पर है। हमारी जैव विविधता एक नया आकार ले रही है, देश के युवा भी अब एग्रीकल्चर को एक आधुनिक, स्केलेबल अवसर के रूप में देख रहे हैं। इस देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बहुत बड़ी ताकतें मिल रही हैं।
मेरे किसान भाई लड़ियाँ,
देश के 11 वर्षों में पूरे कृषि क्षेत्र में बहुत बड़ा बदलाव हुआ है। हमारा कृषि निर्यात करीब दोगुना हो गया है। खेती को आधुनिक बनाने के लिए सरकार ने किसानों की मदद के लिए हर कदम उठाया है। किसान क्रेडिट कार्ड-अकेले केसीसी से ही, इस साल किसानों को 10 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की मदद दी गई है, ये 10 लाख करोड़ का आंकड़ा बहुत बड़ी है। 7 साल पहले पशुपालकों और मछलीपालकों को केसीसी की सुविधा मिलने के बाद वो भी इसका जोरदार लाभ उठा रहे हैं। बायो-फर्टिलॉजर पर जीएसटी कम होने से किसानों को बहुत फायदा हुआ है।
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अभी कुछ ही देर पहले, इसी मंच से हम देश के किसानों को किसान सम्मान निधि की अगली किस्त जारी करेंगे। देश के कोने-कोने में किसानों के पास 18 हजार करोड़ की संपत्तियां हैं। यहां तमिलनाडु के भी लाखों किसानों के खाते में किसान सम्मान निधि के पैसे हैं।
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अब तक इस योजना के तहत, देश के छोटे किसानों को 4 लाख करोड़ रुपये की राशि सीधे उनके बैंक खाते में जमा कराई जाती है। ये राशी किसानों की खेती से जुड़ी कई सारी चीजें पूरी करने का माध्यम बनी है। मैं इस योजना के लाभार्थी विशाल किसान भाई-बहन को बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं। वहाँ पीछे दो कक्षाएँ प्लेकार्ड लेकर कब से खड़ी हैं, उनके हाथ थक गए हैं। मैं लोगों से कहता हूं कि वो लेकर के शायद मेरे लिए लेकर आएं हैं, वो लेकर के मुझे दे दें और आपका जो भी कुछ सुझाव है मैं उसे बड़ी से लूंगा। इसे जरा कलेक्ट करके पास पहुंचें।
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धन्यवाद यू बेटा, आप कबसे हाथ ऊपर करके रुके थे।
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नाइचुरल फॉर्मिंग का विस्तार, आज 21वीं सदी की कृषि की मांग है। कुछ सागरों में, मांग बढ़ने के कारण, साकेत में, एग्रीकल्चर से जुड़े कई सेक्टरों में, केमिकल्स का प्रयोग तेजी से बढ़ाया जाता है। रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का सबसे अधिक उपयोग के कारण, मिट्टी की उर्वरता गिर रही है, मिट्टी की नमी पर असर पड़ रहा है, और इन सबके साथ खेती की लागत हर साल वो बढ़ रही है। इसका समाधान, फसल विविधीकरण और प्राकृतिक खेती ही संभव है।
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हमारी मिट्टी की उर्वरता और फसलों के पोषण पुनरुद्धार के लिए, हमें नैचुरल फार्मिंग के मार्ग पर भी ध्यान देना होगा। ये हमारा विज़न भी है और हमारी ज़रूरत भी है। जब तक हम अपनी आने वाली वनस्पति के लिए, अपनी जैव विविधता को संरक्षित रखेंगे। नाइचुरल खेती हमें क्लाईमेट कंपनी, मौसम में हो रहे बदलावों का सामना करने में मदद करती है। ये हमारी मिट्टी की सेहत को स्वस्थ रख सकता है। और इससे जुड़े लोगों को नुकसान पहुंचाने वाले केमिकल्स से भी संपर्क किया जा सकता है। आज के इस इवेंट में इसी दिशा में एक बहुत बड़ा किरदार निभाया जा रहा है।
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हमारी सरकार भारत के किसानों को नाइचुरल फॉर्मिंग के लिए बहुत-बहुत प्रोत्साहन दे रही है। एक साल पहले केंद्र सरकार ने नेशनल मिशन ऑन नेचुरल फार्मिंग की शुरुआत की थी। इससे लाखों किसान जुड़े हुए हैं। इसका सकारात्मक प्रभाव पूरे दक्षिण भारत में दिख रहा है। यहां आज तमिल में ही, ऑर्गेनिक और नैचुरल फॉर्मिंग पर करीब 35 हजार हेक्टेयर जमीन हो रही है।
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नाइचुरल फॉर्मिंग, भारत का अपना स्वदेशी विचार है। ये हमारे यहां कहीं भी सेपोर्ट नहीं किया गया है। यानी ये हमारी कंपनी ट्रेडिशन से शुरू हुई है, हमारे पूवर्जों ने तपस्या करके इसे तैयार किया है, और ये हमारे पर्यावरण के लिए उपयुक्त है। मुझे खुशी है कि दक्षिण भारत के किसान, प्राकृतिक खेती की उत्पत्ति जैसे, पंचगव्य, जीवामृत, बीजामृत, आच्छादन आदि को निरंतर अपनाया जाता रहा। ये परंपराएं मिट्टी का स्वास्थ्य बेहतर बनाती हैं, समुद्र को रसायन मुक्त बनाती हैं, और औद्योगिक कास्टिंग बहुत कम कर बेचती हैं।
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नाइचुरल फॉर्मिंग के साथ हम अगर श्रीअन्न-मिलेट्स के निर्माता हैं, तो ये भी धरती मां की रक्षा में अहम भूमिका निभाते हैं। तमिल में तो भगवान मुरुगन को, हिरण और श्रीअन्न से बने तेनुम् तिनई-मावुम्, उनका भोग लगाया जाता है। तमिल रीजन्स में कम्बू और समाई, केरला-कर्नाटक में रागी, भोजपुरियों राज्यों में सज्जा और जोन्ना, ये परंपरा से हमारे खान-पान का हिस्सा रहे हैं। हमारी सरकार का प्रयास है कि हमारा ये सुपरफूड दुनिया भर के बाजारों तक पहुंचे। और वैश्विक बाजार में इसकी युसिक रीच को बढ़ाने में नाइचुरल फॉर्मिंग, केमिकल फ्री फॉर्मिंग को भी, बहुत बड़ी भूमिका है। इसलिए मैं जारी हूं, इस समिति में संबंधित प्रयास पर भी जरूर चर्चा होनी चाहिए।
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मेरा एक आग्रह मोनोकल्चर के बजाय मल्टीकल्चर कृषि का भी है। हमें इसका उद्देश्य दक्षिण भारत के कई प्रभाव मिलते हैं। यदि हम केरल या कर्नाटक के पहाड़ी क्षेत्रों में जाएं, तो वहां बहुमंजिला कृषि के उदाहरण हैं। एक ही खेत में नारियल, सुपारी और फलों के पौधे होते हैं। इनमें नीचे दी गई मूर्तियां और काली मिर्च की खेती है। यानी छोटे-छोटे हिस्सों में ही, इतनी सारी साड़ी की पूरी व्यवस्था की जा सकती है। यही नाइचुरल फॉर्मिंग का भी मूल दर्शन है। खेती के इस मॉडल को हमें पैन इंडिया लेवल पर आगे ले जाना है। मैं राज्य से भी स्टॉक में हूं, वो इस पर विचार करें कि कैसे हम इन अभ्यासों को देश के अलग-अलग भूभागों में लागू कर सकते हैं।
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साउथ इंडिया एग्रीकल्चर की एक लिविंग यूनिवर्सिटी चल रही है। इसी भूभाग पर दुनिया के सबसे पुराने क्रियाशील बांध बने। यहां तेरहवीं सदी में कलिंग-रायन नहर बनी, यहां के मंदिर के तालाब विकेंद्रीकृत जल संरक्षण प्रणाली का एक मॉडल बना, इसी धरती ने नदियों के जल को नियंत्रित कर, खेती के लिए इसका इस्तेमाल करने का मॉडल दिया। हजारों साल पहले इसी धरती ने बनाई थी ऐसी वैज्ञानिक जल इंजीनियरिंग। इसलिए, मेरा विश्वास है, देश और दुनिया को प्राकृतिक खेती में शामिल करना भी इसी भूभाग से मिलेगा।
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विकसित भारत के लिए, एक सैद्धांतिक एग्रीकल्चर इकोसिस्टम बनाने के लिए, हम सभी को एक साथ मिलकर काम करना होगा। मैं आधिकारिक तौर पर मेरे किसान भाई-बहनों को, तमिलनाडु के मैं मेरे किसान साथियों से, कि आप वन नॉक, वन सीजन से शुरुआत करें। यानी आप एक सीजन में एक कोने में एक कोने में, अपने खेत में एक कोने में, एक कोने में नैचुरल फार्मिंग करके देखें। वहाँ से जो निष्कर्ष निकलता है, उनका आधार आप दूसरे वर्ष और अधिक करें, तीसरे वर्ष और अधिक करें और आप आगे बढ़ें। मैं सभी वैज्ञानिकों और अनुसंधान संस्थानों से भी आग्रह करता हूं कि प्राकृतिक खेती से लेकर कृषि पाठ्यक्रम का मुख्य भाग। आप गांव में उद्यमियों, किसानों के खेतों को अपनी लैब खरीदें, हमें हर हाल में नैचुरल फॉर्मिंग को विज्ञान समर्थित आंदोलन बनाना होगा। नाइचुरल फॉर्मिंग के इस अभियान में राज्य और एफपीओ की अहम भूमिका, और बहुत बड़ी भूमिका है। कुछ प्राचीन देशों में 10 हजार किसान उत्पाद संघ- एफपीओ बने हुए हैं। एफपीओ की सहायता से हम किसानों के छोटे-छोटे समूह (क्लस्टर) तैयार करते हैं। साथ ही पर स्वच्छता, प्रसंस्करण, प्रसंस्करण की सुविधा भी शामिल है। और ई-नाम जैसे ऑनलाइन बाजार से सीधे व्यापार, इससे प्राकृतिक खेती से जुड़े किसानों को और लाभ होने की इच्छा होगी। जब हमारे किसान का पारंपरिक ज्ञान, विज्ञान की शक्तियाँ, और सरकार का समर्थन, तीन जुड़ते हैं, तो किसान भी समृद्ध होगा, और हमारी धरती माँ भी स्वस्थ रहेगी।
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मेरा पक्का विश्वास है ये समित, और विशेष रूप से हमारे किसान भाई-बहनों ने जो नेतृत्व दिया है, इस समित से देश में नाइचुरल फॉर्मिंग को एक नई दिशा मिलने वाली है। यहां से नए विचार, नए समाधान निकलेंगे। इसी आशा के साथ आप सभी को फिर से बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं। बहुत-बहुत धन्यवाद! मेरे साथ बोलिये-
भारत माता की जय।
भारत माता की जय।
भारत माता की जय।
बहुत-बहुत धन्यवाद!
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