Climate कहानी: क्लिनिक की मार, स्वास्थ्य पर वार, रिपोर्ट में दिखाया गया फ़ैक्ट्रींग का भार
लखनऊ: आज की विशेष प्रस्तुति में प्रस्तुत है, "Climate कहानी: क्लिनिक की मार, स्वास्थ्य पर वार, रिपोर्ट में दिखाया गया फ़ैक्ट्रींग का भार"।
Climate कहानी: क्लिनिक की मार, स्वास्थ्य पर वार, रिपोर्ट में दिखाया गया फ़ैक्ट्रींग का भार
गर्मी बढ़ रही है, बीमारियाँ भी। मगर इलाज के लिए पैसा नहीं। एडेल्फी की नई रिपोर्ट बताती है कि जिस वक्त ग्लोबल संकट हमारी दुनिया, हमारे दर्शन और हमारे शरीर पर असर पड़ रहा है, वही वक्त दुनिया की हेल्थ फंडिंग अब भी 'क्लाइमेट ब्लाइंड' बनी हुई है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2050 तक क्लाइमेट एक्सचेंज से 1.56 करोड़ लोगों की जान जा सकती है, लेकिन अब तक ग्लोबल क्लाइमेट फाइनेंस का सिर्फ 0.5% हिस्सा ही हेल्थ सेक्टर तक पहुंचा है। 2004 से अब तक यह कुल मिलाकर सिर्फ 173 मिलियन डॉलर रही है। यह कुल अनुकूलन फाइनेंस का महज़ 2% है।
मतलब साफ है, गर्मी तेज हो रही है, लेकिन फंडिंग की रफ्तार अब भी सुस्त है।
जलवायु परिवर्तन अब वैश्विक तापमान का मसाला नहीं रह गया है, यह अब हमारे शरीर तक पहुँच चुका है। एडेल्फ़ी की नई रिपोर्ट बताती है कि अगर दुनिया ने अब भी जलवायु संकट के केंद्र में स्वास्थ्य व्यवस्था नहीं रखी है, तो आने वाले समय में इसकी कीमत जानों से चुकानी पड़ सकती है।
एडेल्फी का नया अध्ययन "द नेक्सस ऑफ एडाप्टेशन एंड हेल्थ फाइनेंस" बताता है कि दुनिया के सबसे संवेदनशील देश, विशेष रूप से सब-सहारा अफ्रीका और दक्षिण एशिया, पहले से ही हितवेव, संक्रमण और बढ़ते स्वास्थ्य तंत्र के बीच झूल रहे हैं।
“क्लाइमेट संकट अब हमारी सेहत के लिए खतरा है,” रिपोर्ट की सह-लेखिका मैथिल्ड विल्केन्स ने कहा। "यह दावा करेगा कि क्लाइमेट फाइनेंस ही हेल्थ फाइनेंस है। जब तक ग्लोबल फंडिंग को देश के हेल्थ सर्विसेज से जोड़ा नहीं जाएगा, तब तक रेजीलेंट हेल्थ सिस्टम बनाना अकल्पनीय है।"
देश ने फंड की तलाश की, लेकिन पैसा नहीं मिला
रिपोर्ट में 2025 तक जमा हुए 67 नेशनल एडॉप्शन प्लान (एनएपी) और उनके स्वास्थ्य सिद्धांत (एचएनएपी) का विश्लेषण किया गया। नतीजे वाले हैं 87% एनएपी में स्वास्थ्य सेवाएं शामिल हैं, 39% में स्वास्थ्य के लिए अलग-अलग बजट तय है, लेकिन कुल 2.54 डॉलर की इस बेरोजगारी का सिर्फ 0.1% ही अब तक फाइनेंस हुआ है।
नेपाल और बांग्लादेश जैसे देशों ने प्लास्टिक-तैयार स्वास्थ्य सेवा प्रदाता की मजबूत योजना बनाई है, लेकिन फंडिंग की कमी से अमल अटका हुआ है।
बांग्लादेश के सहभागी अनुसंधान एवं विकास केंद्र के प्रमुख एम.डी. शम्सुद्दोहा ने कहा, "हमारे जैसे देशों के लिए जलवायु संकट का मतलब है, नई बीमारियाँ, हिट स्ट्रेस, मानसिक स्वास्थ्य पर असरदार और स्थिर स्थिति। अगर वैश्विक स्वास्थ्य क्षेत्र में निवेश नहीं हुआ, तो हमारी राष्ट्रीय गोद लेने की योजनाएँ बस कागज़ पर रहेंगी।"
बुज़ुर्गों तक नहीं पहुंच रहा पैसा
एडेल्फ़ी की रिपोर्ट में बताया गया है कि जबकि कुल वित्त का आधा हिस्सा कम से कम विकसित देशों तक पहुंच गया है, मगर केवल 4% ही उन क्षेत्रों में हैं जो संघ या समूह से जुड़े हुए हैं, यानी वहां जहां स्वास्थ्य प्रणाली सबसे नाज़ुक हैं।
सबसे मुख्य बात यह है कि दक्षिण एशिया में एक भी देश-विशेष हेल्थ एडॉप्शन प्रोजेक्ट को अब तक फंडिंग नहीं मिली है, जबकि यह फ्यूचर एरिया के क्लाईमेट-रिल द्वारा निर्धारित हेल्थ इम्पैक्ट्स का 18% झेलने वाला है।
COP30 से विवरण: 'एडॉप्शन कॉप' में स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित करना आवश्यक है
रिपोर्ट ऐसे समय पर है जब अगले चरण ब्राजील के बेलें में COP30 की शुरुआत होने वाली है, जिसमें "एडॉप्शन कॉप" कहा जा रहा है। इस बार ब्राज़ील के प्रेसीडेंसी बेलेम हेल्थ एक्शन प्लान की शुरुआत की जा रही है, यानि कि क्लाइमेट और हेल्थ को जोड़ने की ठोस अवधारणा।
एडेल्फ़ी ने रिपोर्ट में पांच अहम सिफ़ारिशें दी हैं
1. स्वास्थ्य और जलवायु निवेश पर्यटन का पूरा संग्रह,
2. अंतर्राष्ट्रीय वित्त तक बेहतर पहुंच,
3. अनुदान आधारित वित्त ताकि कर्ज का बोझ न उठाया जाए,
4. सेक्टरों और बिल्डरों के बीच की स्थिति,
5. और COP30 में अनुकूलन पर वैश्विक लक्ष्य के लिए आमंत्रण तय करना।
कहाँ स्वास्थ्य है, कहाँ भविष्य है
दुनिया अब उस मोड़ पर है जहां जलवायु और स्वास्थ्य का संबंध सिर्फ वैज्ञानिक नहीं, अनुभव का है।
अगर क्रिटिकल फाइनेंस हेल्थ फाइनेंस नहीं बना है, तो निवेशकों की कीमत तो हिस्सेदारी है, लेकिन उनके अंदर इलाज की सुविधा दी जाएगी।
ब्राजील में वाला COP30 अब सिर्फ होने वाले नेताओं की बातचीत नहीं, बल्कि लाखों जिंदगियों का सवाल है, कि क्या हम अपनी धरती को ही नहीं, अपनी सेहत को भी बचा पाएंगे?-
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