व्हाट्सएप या सोशल मीडिया के ज़रिए नोटिस नहीं भेजा सकता: सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली (लाइव लॉ): 31 Oct 2025, अग्रिम ज़मानत के एक मामले की सुनवाई करते हुए अदालत ने मौखिक रूप से टिप्पणी की कि व्हाट्सएप या ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के ज़रिए नोटिस नहीं भेजा जाना चाहिए।
जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस एनवी अंजारिया की खंडपीठ एक ऐसे मामले की सुनवाई कर रही थी, जिसमें व्यक्ति पर बलात्कार का आरोप है। उस पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 64(2)(f), 351(2), 296 और 3(5) के तहत दंडनीय अपराध करने का आरोप है।
जब अदालत ने पूछा कि, क्या याचिकाकर्ता के वकील ने शिकायतकर्ता-पीड़िता को नोटिस भेजा है तो उन्होंने कहा कि, शिकायतकर्ता से संपर्क नहीं हो पा रहा है और इसलिए उन्होंने व्हाट्सएप पर नोटिस भेजा है।
इस पर जस्टिस कुमार ने मौखिक रूप से टिप्पणी की: "नहीं, नहीं। व्हाट्सएप या ट्विटर नहीं। जाकर नोटिस भेजो।"
वकील ने कहा:
"वह हमारे व्हाट्सएप संदेशों का जवाब नहीं दे रही है। हमने जांच अधिकारी से भी अनुरोध किया। जांच अधिकारी ने हमें बताया कि, जब तक माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा आपको निर्देश नहीं दिया जाता, हम आपकी सेवा स्वीकार नहीं करेंगे। कोई और रास्ता नहीं है।"
इसके बाद न्यायालय ने संबंधित पुलिस को निर्देश दिया कि वह पीड़िता को दो सप्ताह के भीतर सेवा प्रदान करे। याचिकाकर्ता के विरुद्ध कोई भी दंडात्मक कार्रवाई न करने का अंतरिम आदेश जारी रहेगा।
ओडिशा हाईकोर्ट, जिसने याचिकाकर्ता की अग्रिम ज़मानत याचिका खारिज की, उसके समक्ष आरोप यह है कि माता-पिता के बीच कई मुकदमे चल रहे हैं। याचिकाकर्ता पीड़िता का पिता है। उसके विरुद्ध झूठा मामला दर्ज करके शिकायतकर्ता को उसकी माँ द्वारा बलि का बकरा बनाया गया। पीड़िता के बयान पर गौर करने के बाद हाईकोर्ट ने ज़मानत देने से इनकार कर दिया।
Case Details: MANOJ KUMAR MOHANTY v STATE OF ODISHA AND ANR|SLP(Crl) No. s/2025
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(समाचार & फोटो साभार- लाइव लॉ)
www.swatantrabharatnews.com

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