
लाइव 'ला': जमानत आदेश के बावजूद कैदी को रिहा न करने पर सुप्रीम कोर्ट ने यूपी जेलर को किया तलब
नई दिल्ली (लाइव 'ला'): सुप्रीम कोर्ट ने गाजियाबाद जेल से आरोपी व्यक्ति को जमानत आदेश पारित होने के बावजूद रिहा न करने पर गंभीर आपत्ति जताई। साथ ही कोर्ट ने इस बात का भी उल्लेख किया कि कथित तौर पर इस आधार पर कि जिस प्रावधान के तहत उसे बुक किया गया था, उसकी एक उपधारा का उल्लेख जमानत आदेश में नहीं किया गया।
संबंधित जेलर अधीक्षक को व्यक्तिगत रूप से पेश होने का आदेश देते हुए जस्टिस केवी विश्वनाथन और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की खंडपीठ ने मामले को बुधवार को पहली सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया। इसने आगे निर्देश दिया कि डीजी (जेल), यूपी वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से उपस्थित रहेंगे।
"कुछ गड़बड़" महसूस करते हुए कोर्ट ने जो कुछ हुआ उसे "हास्यास्पद" और "न्याय का उपहास" कहा। साथ ही याचिकाकर्ता के कथनों के सत्य पाए जाने पर संबंधित प्राधिकारी के खिलाफ अवमानना कार्रवाई का प्रस्ताव दिया। इसके अलावा, इसने याचिकाकर्ता के वकील को चेतावनी दी कि यदि जेल अधिकारियों के खिलाफ आरोप झूठे पाए गए तो याचिकाकर्ता के लिए परिणाम होंगे - जिसमें जमानत आदेश वापस लेना भी शामिल है।
जस्टिस विश्वनाथन ने कहा,
"यदि हम पाते हैं कि आपका बयान सही नहीं है, या आपको किसी अन्य मामले के कारण हिरासत में लिया गया है तो गंभीर कार्रवाई की जाएगी। लेकिन यदि हम पाते हैं कि यह उप-धारा कारण थी तो हम अवमानना कार्यवाही शुरू करेंगे, क्योंकि यह स्वतंत्रता का मामला है। इस न्यायालय को हल्के में न लें!"
आदेश इस प्रकार लिखा गया:
"यह मामला बहुत दुर्भाग्यपूर्ण परिदृश्य प्रस्तुत करता है। याचिकाकर्ता/आवेदक को इस न्यायालय के दिनांक 29.04.2025 के आदेश द्वारा जमानत पर रिहा किया गया। आदेश स्पष्ट है और इसमें कहा गया कि अपीलकर्ता/आवेदक को गाजियाबाद यूपी में दिनांक 03.01.2024 को दर्ज केस संख्या के संबंध में ट्रायल कोर्ट द्वारा तय की जाने वाली शर्तों पर जमानत पर रिहा किया जाएगा। यह केस आईपीसी की धारा 366 और यूपी गैरकानूनी धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम 2021 की धारा 3/5 के तहत अपराध के लिए दर्ज किया गया था। इस आदेश के बाद अतिरिक्त जिला और सेशन जज, कोर्ट 13, गाजियाबाद ने अधीक्षक जेलर, जिला जेल, गाजियाबाद को एक रिहाई आदेश जारी किया, जिसमें अधीक्षक जेलर को व्यक्तिगत बांड निष्पादित करने के बाद आरोपी व्यक्ति को हिरासत से रिहा करने की आवश्यकता बताई गई, जब तक कि उसे किसी अन्य मामले के संबंध में आवश्यक न हो... यह आदेश (एक महीने पहले) दिया गया... इस आदेश के जारी होने के बाद याचिकाकर्ता द्वारा कहा गया कि वह अपनी स्वतंत्रता सुरक्षित करने में असमर्थ रहा है, क्योंकि हाईकोर्ट और इस न्यायालय के आदेश में 2021 अधिनियम की धारा 5 के खंड (1) को छोड़ दिया गया। इस कारण याचिकाकर्ता को रिहा नहीं किया जा सका। इसलिए याचिकाकर्ता अब धारा 5 के खंड (1) को विशेष रूप से शामिल करने के लिए 29.04.2025 के आदेश में संशोधन की मांग करता है। जैसा कि पहले कहा गया, 29.04.2025 के आदेश में संबंधित धाराओं का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया। यह न्याय का उपहास है कि इस आधार पर कि उप-धारा का उल्लेख नहीं किया गया, याचिकाकर्ता जिसे रिहा करने का आदेश दिया गया, आज तक सलाखों के पीछे रखा गया। इस पर गंभीर जांच की जरूरत है। हम अधीक्षक जेलर, जिला जेल, गाजियाबाद को व्यक्तिगत रूप से अदालत में (संभवतः कल) उपस्थित होने का निर्देश देते हैं। डीजी (जेल), यूपी वीडियो पर दिखाई देंगे।"
Case Title: AFTAB Versus THE STATE OF UTTAR PRADESH, MA 1086/2025 in Crl.A. No. 2295/2025
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(समाचार & फोटो साभार: लाइव 'ला')
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