
*मई दिवस* पर रेल सेवक संघ ने काम के समय को ०८ घंटे से अधिक न रखे जाने के लिए हड़ताल के समय शिकागो की *हे मार्केट* में हुए बम धमाके के शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए निजीकरण और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस / रोबोट से मजदूरों के अस्तित्व को बचाने का आह्वान किया
लखनऊ: आज मई दिवस के अवसर पर रेल सेवक संघ (रजिस्टर्ड) के लखनऊ स्थित प्रधान कार्यालय में एक श्रद्धांजलि सभा आयोजित की गयी जिसमें रेल सेवक संघ (रजिस्टर्ड) के महामंत्री - सच्चिदानन्द श्रीवास्तव के नेतृत्व में ०१ मिनट का मौन रखकर उन सभी मेहनतकश शहीद श्रमिकों को श्रद्धांजलि अर्पित की गयी, जिन्होंने काम के समय को ०८ घंटे से अधिक न रखे जाने के लिए हड़ताल की थी और हड़ताल के समय शिकागो की "हे मार्केट" में हुए बम धमाके में शहीद हुए थे।
इस अवसर पर श्रद्धांजलि सभा को सम्बोधित करते हुए रेल सेवक संघ (रजिस्टर्ड) के महामंत्री - सच्चिदानन्द श्रीवास्तव ने बताया कि:
अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस या मई दिवस मनाने की शुरुआत ०१ मई १८८६ से मानी जाती है जब अमेरिका की मज़दूर यूनियनों ने काम का समय ८ घंटे से अधिक न रखे जाने के लिए हड़ताल की थी। इस हड़ताल के समय शिकागो की हे मार्केट में बम धमाका हुआ था। यह बम किसने फेंका, आज-तक किसी का कोई पता नहीं।
मई दिवस, जिसे अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस के रूप में भी जाना जाता है। आज ०१ मई २०२५ को हम उन सभी मेहनतकश श्रमिकों को भी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं जिन्होंने अपने अथक परिश्रम और समर्पण से समाज और अर्थव्यवस्था के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
सच्चिदानन्द श्रीवास्तव ने बताया कि, आज का यह दिन हमें श्रमिकों के अधिकारों और उनकी उपलब्धियों का सम्मान करने का अवसर प्रदान करता है, साथ ही हमें उनके श्रम की गरिमा को बनाए रखने और उनके कल्याण के लिए निरंतर प्रयास करने की प्रेरणा देता है।
उन्होंने कहा, परन्तु दुःख इस बात का है कि, आज विशेषकर जहां खुदगर्जी व स्वार्थ में डूबे भ्रष्ट नेताओं ने मान्यता, आदि के लालच में श्रमिक संगठनों को कमजोर किया है और कर्मकारों को आज सैकड़ों वर्ष पहले से भी बुरी स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है और उन्हें १२ से १८ घंटे कार्य करने पर मजबूर कर दिया है, वहीँ विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और पूंजीवाद व ट्रेड वार के दबाव में, विदेशी ताकतों के दबाव में सरकार की गलत नीतियां, निजीकरण और आर्टिफिसियल इंटेलिजेंस / रोबोट ने मजदूरों के अस्तित्व को ही समाप्त करने का कार्य प्रारम्भ कर दिया है, जिसे आज स्पष्ट रूप से देखा और महसूस किया जा सकता है !
उदाहरण के तौर पर देश के रेल और सेना सहित सभी सरकारी प्रतिष्ठानों के लगातार जारी निजीकरण और आउट सोर्सिंग व ठेकेदारी से उत्पन्न आर्थिक-आतंकवाद को और कर्मकारों की दयनीय स्थिति को देखा जा सकता है ! कर्मकारों से १२-१२ घंटे काम करने के उपरांत भी उन्हें इतना पारिश्रमिक नहीं दिया जा रहा है जिससे उनके परिवार का भरण-पोषण भी हो सके।
भारतीय रेल में तो स्पष्ट रुप से देखा जा सकता है कि, "आज से ५१ वर्ष पहले १९७४ में देश के सबसे बड़े औद्योगिक प्रतिष्ठान - भारतीय रेल में *वेतन-बोर्ड* गठित करने की मांग को लेकर किये गए ऐतिहासिक हड़ताल के उपरान्त भी रेल उद्योग में वेतन-बोर्ड नहीं लिया जा सका तथा १५ वर्षों से भी अधिक समय बीतने के उपरान्त भी ओल्ड पेंशन स्कीम लागू नहीं कराया जा सका और अघोषित छटनी व निजीकरण को रोका न जा सका !
रेल सेवक संघ के महामंत्री - सच्चिदानन्द श्रीवास्तव ने कहा कि, हमारा मानना है कि, आज यदि भारत देश को और यहां के नागरिकों को - कर्मकारों के अस्तित्व को बचाना है तो अच्छे और ईमानदार लोगों को - विशेषकर ईमानदार व कर्मठ श्रमिक नेताओं को राजनीती में आना पड़ेगा और लोकसभा और विधानसभा में पहुंचकर आर्थिक आतंकवाद, निजीकरण और पूंजीवाद के बिरुद्ध कानून बनाकर देश व देश के मेहनतकशों को ताकतवर बनाना पड़ेगा!
जय हिन्द !
इस अवसर पर श्रद्धांजलि सभा को सम्बोधित करते हुए रेल सेवक संघ (रजिस्टर्ड) के महामंत्री - सच्चिदानन्द श्रीवास्तव ने बताया कि:
अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस या मई दिवस मनाने की शुरुआत ०१ मई १८८६ से मानी जाती है जब अमेरिका की मज़दूर यूनियनों ने काम का समय ८ घंटे से अधिक न रखे जाने के लिए हड़ताल की थी। इस हड़ताल के समय शिकागो की हे मार्केट में बम धमाका हुआ था। यह बम किसने फेंका, आज-तक किसी का कोई पता नहीं।
मई दिवस, जिसे अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस के रूप में भी जाना जाता है। आज ०१ मई २०२५ को हम उन सभी मेहनतकश श्रमिकों को भी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं जिन्होंने अपने अथक परिश्रम और समर्पण से समाज और अर्थव्यवस्था के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
सच्चिदानन्द श्रीवास्तव ने बताया कि, आज का यह दिन हमें श्रमिकों के अधिकारों और उनकी उपलब्धियों का सम्मान करने का अवसर प्रदान करता है, साथ ही हमें उनके श्रम की गरिमा को बनाए रखने और उनके कल्याण के लिए निरंतर प्रयास करने की प्रेरणा देता है।
उन्होंने कहा, परन्तु दुःख इस बात का है कि, आज विशेषकर जहां खुदगर्जी व स्वार्थ में डूबे भ्रष्ट नेताओं ने मान्यता, आदि के लालच में श्रमिक संगठनों को कमजोर किया है और कर्मकारों को आज सैकड़ों वर्ष पहले से भी बुरी स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है और उन्हें १२ से १८ घंटे कार्य करने पर मजबूर कर दिया है, वहीँ विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और पूंजीवाद व ट्रेड वार के दबाव में, विदेशी ताकतों के दबाव में सरकार की गलत नीतियां, निजीकरण और आर्टिफिसियल इंटेलिजेंस / रोबोट ने मजदूरों के अस्तित्व को ही समाप्त करने का कार्य प्रारम्भ कर दिया है, जिसे आज स्पष्ट रूप से देखा और महसूस किया जा सकता है !
उदाहरण के तौर पर देश के रेल और सेना सहित सभी सरकारी प्रतिष्ठानों के लगातार जारी निजीकरण और आउट सोर्सिंग व ठेकेदारी से उत्पन्न आर्थिक-आतंकवाद को और कर्मकारों की दयनीय स्थिति को देखा जा सकता है ! कर्मकारों से १२-१२ घंटे काम करने के उपरांत भी उन्हें इतना पारिश्रमिक नहीं दिया जा रहा है जिससे उनके परिवार का भरण-पोषण भी हो सके।
भारतीय रेल में तो स्पष्ट रुप से देखा जा सकता है कि, "आज से ५१ वर्ष पहले १९७४ में देश के सबसे बड़े औद्योगिक प्रतिष्ठान - भारतीय रेल में *वेतन-बोर्ड* गठित करने की मांग को लेकर किये गए ऐतिहासिक हड़ताल के उपरान्त भी रेल उद्योग में वेतन-बोर्ड नहीं लिया जा सका तथा १५ वर्षों से भी अधिक समय बीतने के उपरान्त भी ओल्ड पेंशन स्कीम लागू नहीं कराया जा सका और अघोषित छटनी व निजीकरण को रोका न जा सका !
रेल सेवक संघ के महामंत्री - सच्चिदानन्द श्रीवास्तव ने कहा कि, हमारा मानना है कि, आज यदि भारत देश को और यहां के नागरिकों को - कर्मकारों के अस्तित्व को बचाना है तो अच्छे और ईमानदार लोगों को - विशेषकर ईमानदार व कर्मठ श्रमिक नेताओं को राजनीती में आना पड़ेगा और लोकसभा और विधानसभा में पहुंचकर आर्थिक आतंकवाद, निजीकरण और पूंजीवाद के बिरुद्ध कानून बनाकर देश व देश के मेहनतकशों को ताकतवर बनाना पड़ेगा!
जय हिन्द !
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